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पश्चिम बंगाल विधानसभा में एंटी रेप बिल पास...पीडि़त कोमा में गई या मौत हुई तो दोषी को 10 दिन में फांसी होगी

by NewsDesk - 04 Sep 24 | 69

‘अपराजिता बिल’ बन पाएगा महिला सुरक्षा की गारंटी?

-20 साल में 5 रेपिस्टों को फांसी...कानून बदला मगर हालात नहीं... अब भी हर दिन 86 रेप

कोलकाता । पश्चिम बंगाल विधानसभा में विशेष सत्र में मंगलवार के ममता सरकार में कानून मंत्री मोलॉय घटक ने एंटी रेप बिल पास कर दिया है। इसे अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) विधेयक 2024 नाम दिया है। अब बंगाल में रेप के दोषी को 10 दिन में मौत की सजा और मामले की जांच 36 दिन में पूरी करनी होगी। आरजी कर मेडिकल कॉलेज में 8-9 अगस्त की रात ट्रेनी डॉक्टर से रेप-मर्डर के बाद से ही डॉक्टर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। इस घटना के बाद ही ममता सरकार एंटी रेप बिल लाई है। अब सवाल उठता है कि क्या ममता का अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक महिला सुरक्षा की गारंटी बन पाएगा।

दरअसल, रेप के दोषियों को फांसी की सजा का प्रावधान पहले से ही कानून में है। हर साल रेप के कई मामलों में दोषियों को फांसी की सजा सुनाई भी जाती है। लेकिन बीते 20 साल में रेप और मर्डर के मामले में पांच दोषियों को ही फांसी की सजा मिली है। दोषियों को मौत की सजा देने का विरोध भी होता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई फैसलों में माना है कि मौत की सजा केवल रेयरेस्ट ऑफ द रेयर मामलों ही दी जानी चाहिए।

10 दिन में फांसी की सजा देना मुमकिन नहीं

महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने के लिए समय-समय पर कानून बदले गए हैं। 2012 के निर्भया कांड के बाद कानून में अहम बदलाव किया गया था। इसके बाद रेप के मामलों में फांसी की सजा का प्रावधान किया गया था। अब पश्चिम बंगाल की ममता सरकार के नए बिल में प्रावधान है कि रेप और मर्डर के मामलों की सुनवाई जल्द से जल्द पूरी की जाएगी। कहा जा रहा है कि रेपिस्टों को 10 दिन के भीतर फांसी की सजा सुना दी जाएगी, लेकिन बिल में इसका जिक्र नहीं है। ऐसे मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक अदालतों में होगी। आंकड़े बताते हैं कि हर साल जिन मामलों में दोषियों को फांसी होती है, उनमें से ज्यादातर रेप और मर्डर के अपराधी होते हैं। दिल्ली की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की प्रोजेक्ट 39 की रिपोर्ट बताती है कि 2023 में सेशन कोर्ट ने 120 मामलों में फांसी की सुनाई थी। इनमें से 64 यानी 53 प्रतिशत मामले रेप और मर्डर से जुड़े थे। हालांकि, अगर सेशन कोर्ट से फांसी की सजा मिली है, तो उस पर हाईकोर्ट की मुहर लगनी जरूरी है।

20 साल में 5 रेपिस्टों को फांसी

पिछले 20 साल के आंकड़े देखें तो रेप और मर्डर के पांच दोषियों को ही फांसी हुई है। 14 अगस्त 2004 को धनंजय चटर्जी को फांसी पर चढ़ाया गया था। उसे 1990 में 14 साल की बच्ची से दुष्कर्म और उसके बाद हत्या के मामले में फांसी की सजा मिली थी। उसके बाद 20 मार्च 2020 को निर्भया के चार दोषियों को फांसी मिली थी। 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में चलती बस में एक युवती के साथ दुष्कर्म हुआ था। बाद में उसकी मौत हो गई। उसे निर्भया नाम दिया गया। निर्भया कांड के 6 दोषी थे, जिनमें एक नाबालिग था। नाबालिग 3 साल की सजा काटकर छूट गया। एक दोषी ने आत्महत्या कर ली। बाकी 4 दोषी मुकेश सिंह, विनय शर्मा, अक्षय ठाकुर और पवन गुप्ता ने अपनी फांसी रुकवाने के लिए सारी तरकीबें आजमा लीं, लेकिन टाल नहीं सके। मार्च 2020 में चारों को तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया।

रेप के मामलों में फांसी की सजा कब

भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 65 में प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ दुष्कर्म का दोषी पाया जाता है तो उसे 20 साल की जेल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। इसमें भी उम्रकैद की सजा तब तक रहेगी, जब तक दोषी जिंदा रहेगा। ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर मौत की सजा का प्रावधान भी है। इसके अलावा जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है। गैंगरेप के मामलों में दोषी पाए जाने पर 20 साल से लेकर उम्रकैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान है। बीएनएस की धारा 70(2) के तहत, नाबालिग के साथ गैंगरेप का दोषी पाए जाने पर कम से कम उम्रकैद की सजा तो होगी ही, साथ ही मौत की सजा भी सकती है। ऐसे मामलों में जुर्माने का भी प्रावधान है। बीएनएस की धारा 66 के तहत, अगर रेप के मामले में महिला की मौत हो जाती है या फिर वो कोमा जैसी स्थिति में पहुंच जाती है तो दोषी को कम से कम 20 साल की सजा होगी। इस सजा को बढ़ाकर आजीवन कारावास या फिर मौत की सजा में भी बदला जा सकता है। इसके अलावा, नाबालिगों के साथ होने वाले यौन अपराध को रोकने के लिए 2012 में पॉक्सो एक्ट लागू किया गया था। कानून में पहले मौत की सजा नहीं थी, लेकिन 2019 में इसमें संशोधन कर मौत की सजा का भी प्रावधान कर दिया। इस कानून के तहत उम्रकैद की सजा मिली है तो दोषी को जीवन भर जेल में ही बिताने होंगे। इसका मतलब हुआ कि दोषी जेल से जिंदा बाहर नहीं आ सकता।

 

फांसी की सजा पाए कैदी

 

2023 के आखिरी तक देशभर की जेलों में 561 कैदी ऐसे थे, जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। ये संख्या 19 सालों में सबसे ज्यादा है। इससे पहले 2004 में ऐसे कैदियों की संख्या 563 थी।

 

वर्ष संख्या

 

2016 400

 

2017 366

 

2018 426

 

2019 378

 

2020 404

 

2021 490

 

2022 541

 

2023 561

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