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आईएमईसी का लक्ष्य दो देशों के बीच जहाज व रेल ट्रांजिट को जोड़ना

by NewsDesk - 18 May 24 | 135

जयशंकर बोले- भारत और हर सदस्य देश इसको आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध

नई दिल्ली । भारत इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकनॉमिक कॉरिडोर (आईएमईसी) और इंटरनैशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) बनाने पर काम कर रहा है, जो चाबहार बंदरगाह से जुड़ेंगे। इसका लक्ष्य एक देश से दूसरे देश के बीच जहाज व रेल ट्रांजिट नेटवर्क तैयार करना है, जो समुद्र मार्ग और सड़क मार्ग की मौजूदा ढुलाई की तुलना में भरोसेमंद व सस्ता हो।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उद्योग संगठन भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के सालाना कारोबार सम्मेलन में जयशंकर ने कहा कि पश्चिम एशिया में चुनौतीपूर्ण स्थिति के बावजूद हर सदस्य देश आईएमईसी को आगे बढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि हम सभी एक-दूसरे से बातचीत कर रहे हैं। किसी चीज को शुरू करने के लिए जरूरी नहीं कि सब कुछ व्यवस्थित हो। हम जहां तक आगे बढ़ सकते हैं, आगे बढ़ेंगे। पिछले जी20 सम्मेलन में अलग से लाए गए आईएमईसी का लक्ष्य भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप को समुद्र-भूमि कनेक्टिविटी से जोड़ना है। इसका लक्ष्य एक देश से दूसरे देश के बीच जहाज व रेल ट्रांजिट नेटवर्क तैयार करना है, जो समुद्र मार्ग और सड़क मार्ग की मौजूदा ढुलाई की तुलना में भरोसेमंद व सस्ता हो।

इसके साथ ही भारत, यूएई, सऊदी अरब, जॉर्डन, इजरायल और यूरोप के बीच वस्तुओं और सेवाओं का कारोबार हो सके। कारोबारियों को ईरान के चाबहार बंदरगाह से गुजरने वाले आईएनएसटीसी और आईएमईसी का लाभ उठाना चाहिए। जयशंकर ने कहा कि यह हमें बाल्टिक सागर तक और दूसरा अटलांटिक सागर तक ले जाता है। पूर्व में भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिदेशीय राजमार्ग बहाल होने से प्रशांत महासागर के रास्तों तक पहुंच होगी । हम ध्रुवीय मार्गों की व्यावहारिकता पर भी विचार कर रहे हैं।

जयशंकर ने जोर देते हुए कहा कि भारत के कारोबारियों को वैश्विक संसाधनों में ज्यादा संभावनाएं तलाशने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक हमने रूस को राजनीतिक या सामरिक लिहाज से देखा। जैसे-जैसे वह देश पूर्व की ओर मुड़ रहा है उससे नए आर्थिक अवसर पैदा हो रहे हैं। हमारे बीच कारोबार में तेजी और नए क्षेत्रों में सहयोग को अस्थायी घटना के रूप में नहीं देखना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि सीआईआई के कार्यक्रम में कहा कि मुद्रा की कमी और लॉजिस्टिक्स की अनिश्चितता से देशों को वैश्वीकरण को नए सिरे से देखने पर बाध्य होना पड़ा है। इसमें नए साझेदारों की तलाश, छोटी आपूर्ति श्रृंखलाएं तैयार करना और वैश्वीकरण पर पुनर्विचार करना शामिल है।

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