23 अगस्त 2023 को चंद्रययान 3 ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचकर इतिहास रच दिया था. इस मिशन के पूरा होने के साथ ही चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरने वाला भारत पहला देश बन गया है. चांद पर पहुंचने के बाद भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सूरज की गुत्थियों को सुलझाने के लिए 2 सितंबर को आदित्य एल-1 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया. अब इसरो समुद्र के रहस्यों को जानने के लिए भी पूरी तरह तैयार है. दरअसल पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के मंत्री किरेन रिजिजू ने 11 सितंबर को सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर जानकारी दी कि इसरो का अगला मिशन समुद्रयान या ‘मत्स्य 6000’ है. इस यान को चेन्नई के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी में तैयार किया जा रहा है. ट्वीट के अनुसार इस यान के जरिए 3 इंसानों को समुद्र की 6000 मीटर की गहराई तक भेजा जाएगा. वहां पहुंचकर वैज्ञानिक समुद्र के स्रोतों और जैव-विविधता का अध्ययन कर सकेंगे.
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के मंत्री किरेन रिजिजू ने ट्वीट करते हुए ये भी साफ कर दिया कि इस प्रोजेक्ट का समुद्री इकोसिस्टम पर कोई असर नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा कि मिशन समुद्रयान एक डीप ओशन मिशन है, जिसे ब्लू इकोनॉमी को डेवलप करने के लिए किया जा रहा है. इससे समुद्र के अंदर की जो जानकारी मिलेगी, उससे कई लोगों को रोजगार मिलेगा. इससे समुद्री संसाधनों का इस्तेमाल होगा. ऐसे में इस खबर में समझते हैं कि ये अभियान क्या है, इसका भारत को क्या फायदा मिलेगा, किन देशों ने ऐसे मिशन को अंजान दिया है और इसके जरिए क्या बड़ी उपलब्धि हासिल होगी ? यह भारत का पहला मानवीय पनडुब्बी मिशन है, जिसमें वैज्ञानिक समुद्र की गहराई में 6000 मीटर तक जाकर विशेष उपकरणों और सेंसर्स के जरिए वहां की स्थितियों और संसाधनों पर रिसर्च करेंगे. यह अभियान भारत के लिए इसलिए बहुत जरूरी है क्योंकि इसके जरिए समुद्र के उन क्षेत्रों के बारे जाना जा सकेगा जिसके बारे में शायद कोई नहीं जानता या फिर दुनिया को बहुत ही कम जानकारी है और अभी तक केवल कुछ ही देशों में ऐसा कर पाने की क्षमता है.
समुद्रयान अभियान के जरिए महासागरों की गहराइयों में निकल, कोबाल्ट, मैगनीज जैसे दुर्लभ खनिजों की खोज में मदद मिलेगी. यह मानव युक्त मिशन है इसलिए सीधे तौर पर इन खनिजों का परीक्षण और नमूना संग्रह हो सकेगा. समुद्रयान की डिजाइन को अंतिम रूप दे दिया गया है. इस मिशन को पूरा करने वाली मत्स्य 6000 नाम की इस सबमर्सिबल की टेस्टिंग बंगाल की खाड़ी में की जाएगी. पहले ट्रायल में इसे समुद्र के अंदर 500 मीटर तक की गहराई में भेजा जाएगा और साल 2026 तक ये सबमर्सिबल तीन भारतीयों को महासागर के 6000 मीटर की गहराई में ले जाएगा. इस मिशन को पूरा करने के लिए जिस 'मत्स्य 6000' का इस्तेमाल किया जाने वाला है वह दूर से संचालित किया जा सकेगा. इस सबमर्सिबल को गहराई तक ले जाने के लिए इसकी परत को 80 मिलीमीटर मोटी टाइटेनियम मिश्रित धातु से बनाया गया है और यह 12 घंटे के लिए लगातार काम कर सकेगा.
हालांकि आपातकालीन स्थितियों में यह 96 घंटे तक काम कर सकता है. ये 6000 मीटर की गहराई पर समुद्र तल के दबाव से 600 गुना ज्यादा यानी 600 बार (दबाव मापने की इकाई) प्रेशर झेल सकती है. इसका व्यास 2.1 मीटर है. मिशन चंद्रयान भारत के 'डीप ओसीन' मिशन का हिस्सा है जो ब्लू इकोनॉमिक पॉलिसी के अनुकूल है. इस नीति को लक्ष्य महासागरों और समुद्रों के संसाधनों की सदुपयोग करना है. इस मिशन में निकल, कोबाल्ट, मैग्जिम जैसे दुर्लभ खनिजों की खोजे जाएंगे. कोबाल्ट, लिथियम, तांबा और निकल बैटरी वाली गाड़ियों में इस्तेमाल होते हैं. स्टील इंडस्ट्री के लिए मैग्जिम भी बेहद महत्वपूर्ण है. साल 2023 तक भारत को 5 गुना लिथियम और 4 गुना कोबाल्ट की जरूरत होगी. ई गाड़ियों की तेज होती मांग और संसाधनों की कमी के बीच ये मिशन काफी महत्वपूर्ण है.
बता दें कि भारत छठवां देश है जिसने मानव सबमर्सिबल बनाई है. भारत से पहले रूस, अमेरिका, जापान, फ्रांस और चीन भी मानवयुक्त सबमर्सिबल बना चुका है. केंद्र सरकार की ब्लू इकोनॉमी पहल के तहत डीप ओशन मिशन साल 2021 में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी. इस मिशन पर पांच साल में 4,077 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे और मिशन समुद्रयान भी इस डीप ओशन मिशन का हिस्सा है. दरअसल देश की जीडीपी का 4 प्रतिशत हिस्सा ब्लू इकोनॉमी से जुड़ा हुआ है. ये 95 प्रतिशत व्यापार में मददगार है और देश की लगभग 30 प्रतिशत आबादी समुद्र पर निर्भर है. ‘मत्स्य 6000’ को पूरे दो सालों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है. फिलहाल वह इसका परीक्षण किया जा रहा है. दरअसल साल 2023 के जून महीने में अटलांटिक ओशन में टाइटन नाम की एक सबमर्सिबल डूब गई थी. जिसमें पांच अरबपतियों की मौत हो गई थी.
इस घटना को ध्यान में रखते हुए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने ‘मत्स्य 6000’ की डिजाइन की जांच करने का फैसला किया है. पनडुब्बी और सबमर्सिबल ये दोनों ही पानी के अंदर चलने वाला यान हैं, लेकिन इन दोनों के ही डिजाइन से लेकर काम और उद्देश्य में काफी फर्क है. आसान भाषा में समझें तो पनडुब्बी एक तरह का जलयान है जो पानी की सतह और नीचे दोनों पर काम कर सकता है. पनडुब्बी को चलाने के लिए बिजली या डीजल इंजन का इस्तेमाल किया जाता है. आकार की बात करें तो आमतौर पर पनडुब्बियां बड़ी होती हैं और इस रानी और सैन्य उद्देश्यों के लिए किया जाता है. जबकि सबमर्सिबल की बात करें तो यह एक तरह का वॉटरक्राफ्ट है जिसे डिजाइन ही सिर्फ और सिर्फ पानी के नीचे चलाने के लिए किया गया है. सबमर्सिबल का आकार छोटा होता है और यह कुछ सीमित लोगों को ही पानी के अंदर ले जा सकता है. सबमर्सिबल का इस्तेमाल ज्यादातर रिसर्च के कामों के लिए किया जाता है.