भारत में शायद पहली बार हो रहा है कि विदेशी धरती पर चल रहे आतंकी महायुद्ध पर सरकार और विपक्ष एक दूसरे पर जुबानी बम बरसा रहे हैं. हमास द्वारा इजराइल पर किए गए आतंकी हमले की कड़ी निंदा करते हुए मोदी सरकार इजराइल को अपना पूर्ण समर्थन दे रही है तो कांग्रेस फिलिस्तीन के पक्ष में हमास के आतंकवाद को अप्रत्यक्ष समर्थन देती दिखाई दे रही है. भारत की आत्मा गांधी दर्शन और अहिंसा है. किसी जायज उद्देश्य के लिए भी हिंसा भारत का विचार नहीं है. भारत में इस महायुद्ध पर राजनीतिक बमबारी को हमास और इजरायल के लड़ाकों के समुदायों के रूप में देखने से स्पष्ट हो सकेगा. हमास मुस्लिम लड़ाकों का संगठन है. इसे तो ISIS जैसा भी कहा जा रहा है. फिलिस्तीन और इजरायल के बीच विवाद के ऐतिहासिक कारणों में मुसलमानों और यहूदियों के बीच संघर्ष का लंबा सिलसिला है. हमास को मुस्लिम देशों का समर्थन है. इजराइल और अरब देशों के बीच बेहतर हो रहे रिश्तों के बीच किये गए हमास के आतंकवादी हमले को मुस्लिम स्वाभिमान से जोड़कर मुस्लिम राष्ट्रों में देखा जा रहा है. मुस्लिमों से जुड़ा कोई भी विषय चाहे वह भारत के अंदर हो चाहे वह भारत के बाहर हो. उसका राजनीतिक उपयोग देश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल करने से पीछे नहीं रहते.
भारत के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है. लोकसभा चुनाव भी बहुत दूर नहीं है. ऐसे में वोट बैंक की धार सभी राजनीतिक दल तेज कर रहे हैं. हिंदुत्व और जातिवाद की राजनीति में मुस्लिम समुदाय सबसे बड़ा वोट बैंक माना जाता है. भारत सरकार ने हमास और इजरायल के महायुद्ध में जो प्रतिक्रिया दी है, उसका सबसे प्रबल आधार यह है कि आतंकवाद के सभी रूपों का भारत कठोरता के साथ स्पष्टता से विरोध करता है. भारत हजारों साल गुलामी में रहा लेकिन हिंसा का सहारा नहीं लिया गया, पूरी आजादी की लड़ाई अहिंसा के आधार पर लड़ी गई. भारत ने भी अनेक रूपों में आतंकवाद का दंश झेला है. पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद आज भी कश्मीर में बीच-बीच में सिर उठाता हुआ दिखाई पड़ता है. भारत में भी आतंकवाद की घटनाएं खास समुदाय से ही जुड़ती रही हैं. भाजपा और कांग्रेस के बीच आतंकवाद पर राजनीतिक लड़ाई में मुस्लिम आतंकवाद और हिंदू आतंकवाद की अवधारणाओं का राजनीतिक पोषण करने से परहेज नहीं किया गया. पाकिस्तान से प्रायोजित आतंकवाद तो मुस्लिम समुदाय से ही अधिकांश समय जुड़ा है. अमेरिका में 9/11 और भारत में 26/11 के आतंकी हमले में भी मुस्लिम आतंकवादियों का ही हाथ पाया गया था.
सामान्य रूप से ऐसा सोचा नहीं जा सकता कि एक ही मुद्दे पर भारत सरकार का नजरिया अलग होगा और विपक्ष के रूप में कांग्रेस और दूसरे दलों का स्टैंड अलग होगा. कांग्रेस कार्यसमिति में फिलीस्तीन के आजादी के आंदोलन के रूप में इस महायुद्ध को सैद्धांतिक समर्थन दिया गया है. भाजपा इसी बात को कांग्रेस द्वारा आतंकवाद का समर्थन और मुसलमानों के तुष्टिकरण के रूप में पेश कर रही है. तुष्टिकरण भारत में वोट बैंक मजबूत करने के लिए बहुत कम लागत का सुनिश्चित राजनीतिक प्रयोग रहा है. प्रयोग इसको इसलिए कहा जा रहा है कि मुस्लिमों के तुष्टिकरण से राजनीतिक लाभ हासिल करने वाली कांग्रेस पार्टी की सरकारों की विकास नीतियों में मुस्लिमों के विकास का अगर आकलन किया जाए तो तुष्टिकरण का प्रभाव दिखाई नहीं पड़ता है. देश में मुस्लिमों की स्थिति विकास के मामले में आज भी पिछड़ी हुई दिखाई पड़ती है. विकास के जिस भी संकेतक पर समीक्षा की जाए तो यह समुदाय पीछे ही दिखाई पड़ेगा. अब तो कांग्रेस जाति राजनीति के चक्कर में ‘जितनी हिस्सेदारी उतना हक’ का नया विचार लेकर आई है. यह विचार अंततः बहुसंख्यकवाद को ही महत्व देता है. इस विचार के नतीजे में तुष्टिकरण आबादी के हिसाब से करने का समय आ गया है. कांग्रेस और विपक्ष मुस्लिम समाज के लिए कुछ करें या नहीं करें लेकिन सरकार द्वारा इस समुदाय के लिए समभाव से किए जा रहे विकास कार्यों में जुबानी बमबारी से तुष्टिकरण की संभावनाओं को तलाशने में कोई कमी नहीं छोड़ रही.
बीजेपी की सरकार विकास या राष्ट्र से जुड़े किसी भी मुद्दे परआगे बढ़ती हैं तो मुस्लिम समाज के तुष्टीकरण की परंपरागत राजनीतिक महामारी प्रारंभ हो जाती है. चाहे धार्मिक विवाद हो, चाहे आतंकवादी गतिविधियां हो, चाहे राष्ट्र की सुरक्षा और राष्ट्रीय एकता के लिए नए कानूनी प्रावधानों का विषय हो. तुष्टिकरण का विचार सबसे पहले खड़ा हो जाता है. विपक्षी राजनीति द्वारा ऐसा मान लिया गया है कि भाजपा सरकारों में सब कुछ मुसलमानों के हितों के खिलाफ हो रहा है. देश और देश के बाहर इसी तरीके का माहौल बनाया जाता है कि मुसलमान भारत में खतरे में है. अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को लेकर मुसलमानों की भावनाओं को वोट बैंक के लिए सहलाया और फुसलाया जाता है. इसके विपरीत भाजपा सरकारों में विकास की प्रक्रिया में मुसलमानों को योजनाओं में मिल रहे समान अवसर धीरे-धीरे तुष्टिकरण की राजनीतिक प्रक्रिया को कमजोर करते जा रहे हैं। कांग्रेस हिंसा और आतंकवाद की घटनाओं पर तुष्टिकरण के नजरिए से कोई काम करती है या नहीं करती लेकिन राजनीतिक माहौल तो ऐसा ही बनाया जाता है कि कांग्रेस का लक्ष्य केवल तुष्टिकरण करके वोट बैंक को मजबूत करना है.
हिंसा की घटनाओं का कांग्रेस परिवार को तो बहुत बड़ा और घातक नुकसान हुआ है. कांग्रेस के दो महान नेताओं इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को हिंसा में ही शहीद होना पड़ा था. देश की सुरक्षा से जुड़े हर मुद्दे को तुष्टिकरण की राजनीति में देखना बौद्धिक ईमानदारी तो नहीं है. कांग्रेस के नेता मुस्लिम संगठन पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (PFI) के खिलाफ देश में डाले जा रहे छापों और जांच कार्यवाहियों को फर्जी करार दे रहे हैं. राजनीतिक विरोध अपनी जगह है लेकिन किसी भी सरकारी प्रक्रिया का इस स्तर पर जा कर विरोध करना कांग्रेस पर तुष्टिकरण के आरोपों की पुष्टि करता है. देश की सुरक्षा, विदेश नीति, राष्ट्रीय एकता के मामलों में कांग्रेस की सरकारों के समय भी विपक्ष के रूप में बीजेपी समर्थन करने में अग्रणी रही है. बांग्लादेश युद्ध के समय वरिष्ठ भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेई ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’ की उपाधि दी थी. राजनीतिक तुष्टिकरण भी देश के साथ एक प्रकार की हिंसा है. हमास और इजरायल की आतंकी लड़ाई में कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों को सरकार के रुख़ के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना चाहिए. इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि इज़राइल में इस हालात में सत्तापक्ष और विपक्ष एकजुट है लेकिन भारत में सियासत इस पर बंटी हुई है.