नई दिल्ली। राजस्थान की राजनीति में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उन्ही की पार्टी के कद्दावर कांग्रेस नेता सचिन पायलट में कभी नहीं बनी। दोनों ही नेताओं ने एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी में कोई कसर नहीं छोड़ी।
विवाद इतना बढ़ा कि सियासी गलियारों में चर्चा होने लगी थी कि गहलोत और सचिन पायलट में से कोई एक ही राजस्थान मे रहेगा। वजह ये थी कि सचिन पायलट के तीखे होते तेवर कहीं दूसरे दल की तरफ न मोड़ दें ऐसी शंकाएं भी सियासी चौपाल पर सुनाई देने लगे थे। अब ऐसा क्या हो गया कि बीते कई महीनों से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस नेता सचिन पायलट के बीच कोई खटपट सुनाई नहीं दे रही है। तो क्या दोनों नेताओं का हृदय परिवर्तन हो गया है। या फिर सियासी दुश्मनी अब दोस्ती में बदल गई है। ऐसे तमाम सवालों के जबाव गुरुवार की शाम सचिन पायलट ने कांग्रेस मुख्यालय पर आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में दे दिए हैं।
दरअसल हुआ यूं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत इन दिनों ईडी की रडार पर हैं। एक मामले में उन्हे ईडी ने समन जारी किया है। इससे वैभव की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इन मुश्किलों में संकट मोचक की भूमिका में सचिन पायलट उतरे और उन्होंने वैभव की वकालत करते हुए मीडिया के समक्ष उनका पक्ष रखा। सचिन ने अपने गृह राज्य राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा समन जारी किए जाने की आलोचना की। उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को तलब किए जाने के समय, उद्देश्य और नीयत को संदिग्ध करार देते हुए कहा कि जांच एजेंसी की पूरी कार्रवाई राजनीति से प्रेरित है। कांग्रेस नेता ने यह दावा भी किया कि विधानसभा चुनाव से कुछ दिनों पहले ईडी की कार्रवाई इस बात का प्रमाण है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कमजोर हो चुकी है और उसे अपनी हार दिखाई दे रही है।
पायलट का कहना था, ‘कांग्रेस भ्रष्टाचार के खिलाफ है। अगर कोई निष्पक्ष जांच होती है और कोई भी प्रमाण मिलता है तो कार्रवाई हो, लेकिन राजनीति से प्रेरित कार्रवाई लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।’ वैभव गहलोत को ईडी द्वारा समन भेजे जाने पर उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री के पुत्र वैभव गहलोत को जिस मामले में तलब किया गया है, वो 12 साल पुराना है। सब समझते हैं कि चुनाव तारीखों के ऐलान के बाद अचानक से समन भेजने के पीछे क्या सोच हो सकती है।’हालांकि पायलट और अशोक गहलोत के बीच मतभेद कई बार सार्वजनिक हो चुका है। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि गहलोत और उनके परिवार के प्रति पायलट द्वारा सार्वजनिक रूप से एकजुट होकर समर्थन जाहिर करने की बात, एक साल पहले बेहद अकल्पनीय होती। वहीं दूसरी तरफ इस तरह के बदलाव का श्रेय कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को मिल सकता है जिन्होंने अपनी पहचान, पार्टी के अंदर गुटबाजी खत्म करने, विभिन्न गुटों के बीच शांति स्थापित करने और सब तक पहुंच बनाने के साथ ही सबके बीच आम सहमति बनाने से जुड़ी है। खरगे ने 26 अक्टूबर, 2022 को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में शपथ ली। पार्टी की सोशल मीडिया टीम ने पार्टी अध्यक्ष के रूप में पहली वर्षगांठ के मौके पर उनके नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ पार्टी की जीत में उनके योगदान की सराहना की और उम्मीद जताई कि आगामी चुनावों में भी पार्टी का ‘विजय रथ’ अनवरत चलता रहेगा। कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी के शीर्ष पद पर आसीन होने के साथ ही पहले साल में अधिक चुनौतियां झेली हैं और विपक्षी गठबंधन को तैयार करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दरअसल खरगे के कहने पर ही 18 फरवरी, 2023 को कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ माकपा के सम्मेलन में मंच साझा किया। इस मुलाकात के चलते ही चार महीने बाद 23 जून को पटना में विभिन्न पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच पहली विपक्षी एकता वार्ता का रास्ता तैयार हुआ जिसकी मेजबानी नीतीश कुमार ने की थी। उस वक्त से ही खरगे और उनकी टीम, विपक्षी नेताओं से बातचीत के लिए उपलब्ध रहे हैं जबकि जब राहुल गांधी और सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष रहीं तब उस दौरान यह इतना सुलभ नहीं था। खरगे ने ही यह सुनिश्चित किया कि बेंगलूरु में हुई एकता बैठक में गांधी परिवार की उपस्थिति रहे ताकि यह दिखाया जा सके कि दोनों नेता सहमत हैं और विपक्षी एकता को लेकर की जा रही कोशिश में उनका समर्थन है। खरगे ने पार्टी के भीतर भी कांग्रेस संगठन को मजबूत करने पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित किया ताकि गांधी परिवार को चुनाव प्रचार करने का वक्त मिल सके। उन्होंने 25 राज्य इकाइयों के साथ बैठकें की हैं और कांग्रेस कार्य समिति का पुनर्गठन किया है।
उन्होंने कांग्रेस कार्य समिति में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिलाओं, युवाओं और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नेताओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व देना सुनिश्चित किया। इसके अलावा उन्होंने पार्टी के अहम कार्यक्रम भी दिल्ली के बाहर कराने पर जोर दिया। पार्टी ने अपना स्थापना दिवस समारोह मुंबई में आयोजित किया। राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान ऐसा हुआ था लेकिन उसके बाद, पहली बार पार्टी ने दिल्ली के बाहर ऐसा आयोजन किया। उनकी टीम के अनुसार, 81 वर्षीय खरगे राज्यों के कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ औसतन एक दर्जन बैठकें करते हैं। पार्टी के सूत्र उन्हें छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मध्य प्रदेश की पार्टी इकाइयों में अंदरूनी कलह और गुटबाजी को शांत करने का श्रेय भी देते हैं।