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- Tuesday, Nov 26, 2024
by NewsDesk - 11 Jun 24 | 118
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में भाजपा को पूरी तरह बहुमत नहीं मिला है। इससे भाजपा और उससे जुड़े तमाम संगठनों चर्चा हो रही है। भीतर ही भीतर समीक्षा कर नतीजों के नतीजे निकाले जा रहे हैं। इसी बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने चुनाव के नतीजों पर खुलकर अपनी बात रखी है। नागपुर में कार्यकर्ता विकास वर्ग - आरएसएस के लिए एक आवधिक प्रशिक्षण कार्यक्रम - के समापन के बाद आरएसएस के पदाधिकरी और स्वयंसेवकों की एक सभा को संबोधित करते हुए, कहा कि एक सच्चे सेवक में अहंकार नहीं होता है और दूसरों को चोट पहुंचाए बिना काम करता है। कड़वे चुनाव अभियान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, सजावट बरकरार नहीं रखी गई।
इतना ही नहीं मोहन भागवत ने आगे कहा कि चुनाव को युद्ध नहीं बल्कि प्रतिस्पर्धा के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “जिस तरह की बातें कही गईं, जिस तरह से (चुनावों के दौरान) दोनों पक्षों ने एक-दूसरे को आड़े हाथों लिया। जिस तरह से किसी को भी इस बात की परवाह नहीं थी कि जो किया जा रहा है उससे सामाजिक विभाजन पैदा हो रहा है और बिना किसी कारण के संघ को इसमें घसीटा गया।” टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से झूठ फैलाया गया। क्या ज्ञान का उपयोग इसी तरह किया जाना चाहिए? ऐसे कैसे चलेगा देश?” विपक्ष पर भागवत ने कहा, मैं इसे विरोध पक्ष नहीं कहता, प्रतिपक्ष कहता हूं. प्रतिपक्ष विरोधी नहीं है। यह एक पक्ष को उजागर कर रहा है और इस पर विचार-विमर्श किया जाना चाहिए। यदि हम समझते हैं कि हमें इसी तरह काम करना चाहिए, तो हमें चुनाव लड़ने के लिए आवश्यक शिष्टाचार का ज्ञान होना चाहिए। उस मर्यादा का ध्यान नहीं रखा गया।”उन्होंने कहा कि चुनाव लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं और चूंकि इसमें दो पक्ष होते हैं, इसलिए प्रतिस्पर्धा होती है। उन्होंने कहा,“इसकी वजह से दूसरे को पीछे छोड़ने की प्रवृत्ति होती है और ऐसा ही होना भी चाहिए। लेकिन वहां भी मर्यादा महत्वपूर्ण है। असत्य का प्रयोग नहीं करना चाहिए, लोग चुने गए हैं, वे संसद में बैठेंगे और आम सहमति से देश चलाएंगे। सर्वसम्मति हमारी परंपरा है।” भागवत के मुताबिक विचारों और सोच में कभी भी 100 फीसदी तालमेल नहीं होगा।
उन्होंने कहा, “लेकिन जब समाज तय करता है कि मतभेदों के बावजूद हमें एक साथ चलना है, तो आम सहमति बनती है। संसद में दो पक्ष होते हैं ताकि दोनों पक्षों को सुना जा सके। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, यदि एक पक्ष कोई विचार लाता है, तो दूसरे पक्ष को दूसरा दृष्टिकोण प्रकट करना होगा, उन्होंने कहा, हमें खुद को चुनावों की बयानबाजी की ज्यादतियों से मुक्त करना होगा और भविष्य के बारे में सोचना होगा। मणिपुर में हिंसा में बढ़ोतरी पर भागवत ने कहा, हर जगह सामाजिक वैमनस्य है। यह अच्छा नहीं है। पिछले एक साल से मणिपुर शांति का इंतजार कर रहा है। पिछले एक दशक से यह शांतिपूर्ण था। ऐसा प्रतीत हुआ कि पुराने समय की बंदूक संस्कृति ख़त्म हो गई थी। लेकिन जो बंदूक संस्कृति अचानक आकार ले ली, या बनाई गई, उससे मणिपुर आज भी जल रहा है। इस पर कौन ध्यान देगा? इससे प्राथमिकता से निपटना कर्तव्य है।” उन्होंने मणिपुर में जारी हिंसा पर संघ की चिंता भी दोहराई और पूछा कि जमीनी स्तर पर समस्या पर कौन ध्यान देगा। उन्होंने कहा कि इसे प्राथमिकता के आधार पर निपटाना होगा। उन्होंने कहा, “जो विशाल सेवक है, वह मर्यादा से चलता है...उस मर्यादा का पालन करके जो चलता है वह कर्म करता है लेकिन कर्मों में लिपटा नहीं होता। हमें अहंकार नहीं आता कि मैंने किया और वही सेवक कहने का अधिकारी रहता है। जो मर्यादा बनाए रखता है वह अपना काम करता है, लेकिन अनासक्त रहता है। इसमें कोई अहंकार नहीं है कि मैंने यह किया है। केवल ऐसे व्यक्ति को ही कहलाने का अधिकार है । आरएसएस प्रमुख ने ये टिप्पणी ऐसे समय में की है जब भाजपा और संघ ने चुनाव नतीजों के बाद चर्चा की है और केंद्र में एक नई गठबंधन सरकार कार्यभार संभाल रही है।
by NewsDesk | 28 Sep 24
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