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- Thursday, Nov 21, 2024
by NewsDesk - 13 Jan 24 | 262
राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में 22 जनवरी को दलित नेताओं के परिवारों को भी बुलाया गया है, जिन्हें देख 2024 चुनाव की तैयारियों में जुटे कई नेताओं की बेचैनी बढ़ सकती है. अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का न्योता अनुसूचित जाति के विशिष्ट परिवारों को भी मिला है. जी हां, संतों, नेताओं, किसानों, मजदूरों, आंदोलन में मारे गए कारसेवकों के परिवारों के साथ-साथ कुछ ऐसे दिग्गज दलित नेताओं के परिजनों को न्योता मिला है जो विपक्षी दलों को बेचैन कर सकता है.
सबसे बड़ा नाम डॉ. भीमराव आंबेडकर का है. भारत का संविधान तैयार करने वाले आंबेडकर के नाम पर देश में कई पार्टियों ने राजनीति की है. दलित हितों के विमर्श को आगे बढ़ाते हुए कांशीराम और मायावती की बसपा हो, चंद्रशेखर आजाद हों या खुद आंबेडकर के वंशज अनुसूचित जाति-जनजाति समुदाय के नेता बनकर उभरे. ऐसे समय में जब 2024 का लोकसभा चुनाव करीब है, सभी पार्टियां अपना समीकरण साधने में जुटी हैं, राम मंदिर का न्योता उनके लिए नई टेंशन पैदा कर सकता है.
आंबेडकर के घरवालों को न्योता
डॉ. आंबेडकर के वंशज प्रकाश आंबेडकर महाराष्ट्र में रहते हैं और उन्होंने 'वंचित बहुजन आघाडी' नाम से पार्टी बनाई है. वह तीन बार सांसद रहे हैं. जब भी किसी पार्टी का नेता दलितों के हित की बात करता है, बाबा साहेब को याद करना नहीं भूलता. ऐसे में 2024 के चुनाव को देखते हुए अयोध्या से न्योता आने के मायने जरूर निकाले जाएंगे. वैसे भी कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल आयोजन को 'राजनीतिक परियोजना' बता चुके हैं. कांग्रेस के अध्यक्ष खरगे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी 22 को अयोध्या नहीं जा रहे हैं.
मीरा कुमार के सामने धर्मसंकट
दूसरा बड़ा नाम बाबू जगजीवन राम का है. उन्हें 'बाबूजी' के नाम से पहचान मिली. उनके बारे में कहा जाता है कि वह दो बार प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए थे. वह देश के पहले दलित उप-प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री भी रहे. उनकी बेटी पूर्व स्पीकर मीरा कुमार कांग्रेस पार्टी से जुड़ी हैं. उनकी पार्टी के नेता 22 जनवरी को अयोध्या नहीं जा रहे हैं. ऐसे में यह जगजीवन राम के घरवालों के लिए धर्मसंकट की स्थिति हो सकती है. हो सकता है परिवार के कुछ लोग जाएं भी लेकिन मीरा कुमार के लिए यह फैसला करना आसान नहीं होगा. इंदिरा गांधी के समय इमर्जेंसी हटाए जाने के बाद जगजीवन राम कांग्रेस से अलग हो गए थे और नई पार्टी बना ली थी. बाद में जनता पार्टी की सरकार में वह उप- प्रधानमंत्री बने.
मायावती की बेचैनी बढ़ेगी !
तीसरा नाम बसपा संस्थापक कांशीराम का है. उन्होंने पहली बार उत्तर भारत में दलितों को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाया. हिंदी पट्टी में उन्होंने ही दलितों को एकजुट किया था. मायावती को वही राजनीति में लाए और यूपी में कई बार वह मुख्यमंत्री बनीं. कांशीराम ने उन्हें अपना उत्तराधकारी घोषित किया था. काफी समय तक मायावती उत्तर भारत में सबसे बड़े दलित चेहरे के रूप में जानी जाती रहीं. हालांकि केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद वो चमक फीकी पड़ गई. एक समय यूपी में सरकार चलाने वाली पार्टी का जनाधार अब खिसक चुका है. फिलहाल वह विपक्षी गठबंधन में शामिल नहीं हैं. ऐसे में कांशीराम के घरवालों को अयोध्या से न्योता आना मायावती की राजनीति को प्रभावित कर सकता है.
किसे-किसे बुलाया गया
सूत्रों ने बताया है कि ‘राम जन्मभूमि आंदोलन’ के दौरान मारे गए कारसेवकों के परिवार के सदस्यों को भी आमंत्रित किया गया है. देशभर से किसानों, मजदूरों और हजारों संतों के भी समारोह में शामिल होने की उम्मीद है. एक सूत्र ने बताया, ‘मेजबान यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को छोड़कर, किसी अन्य मुख्यमंत्री को समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया है.' सूत्र ने यह भी बताया कि किसी राज्य या केंद्र में मंत्री होने के नाते नेताओं को आमंत्रित नहीं किया गया है.आमंत्रित लोगों की सूची में सुप्रीम कोर्ट के तीन सेवानिवृत्त चीफ जस्टिस, सेना के तीनों अंगों के सेवानिवृत्त प्रमुख, पूर्व राजदूत, शीर्ष नौकरशाह, ‘प्रमुख पदों’ पर आसीन आईपीएस अधिकारी और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लोग शामिल हैं. प्रमुख राजनीतिक दलों के अध्यक्षों और सभी दलों के अयोध्या स्थित प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है.
सूत्रों ने बताया कि इस समारोह में आदिवासी समुदाय और खानाबदोश जातियों के ‘प्रमुख लोगों’ के साथ-साथ उद्योगपतियों और उद्यमियों को भी आमंत्रित किया गया है. सूत्र ने बताया, ‘समारोह के लिए कुछ स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों और भारत रत्न, परमवीर चक्र, पद्म पुरस्कारों से सम्मानित व्यक्तियों के साथ-साथ प्रमुख शिक्षाविदों,बुद्धिजीवियों, कवियों, कलाकारों, साहित्यकारों, किसानों, मजदूरों और खिलाड़ियों को आमंत्रित किया गया है.’ ‘कथाकारों, मठों और मंदिरों के न्यासियों, 150 से अधिक परंपराओं के पुजारियों, नेपाल के 'संत समाज' के प्रमुख लोगों के साथ-साथ जैन, बौद्ध और सिख समुदायों के प्रतिनिधियों और प्रमुख दानदाताओं को भी आमंत्रित किया गया है.’ सूत्रों ने बताया कि आमंत्रित लोगों में 50 अलग-अलग देशों में रहने वाले हिंदू समाज के 55 लोग शामिल हैं. राम मंदिर ट्रस्ट ने 22 जनवरी के समारोह के लिए आमंत्रित सभी लोगों के लिए भोजन, ठहरने और स्थानीय परिवहन की व्यवस्था की है.
by NewsDesk | 28 Sep 24
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