- शैव संप्रदाय के लोगों 9 वी 10 वी शताब्दी में बनाया था मठ
- जिला प्रशासन और पुरातत्व विभाग की लापरवाही
शिवपुरी। शिवपुरी जिले के रन्नौद स्थित प्राचीन खोकई मठ को जाने वाले रास्ते की हालत इन दिनों खराब है। यहां पर मठ को जाने वाला रास्ता इतना खराब है कि आपको कीचड़ भरे रास्ते से जाना पड़ेगा। रन्नौद से अंदर करीब डेढ़ किमी तक आपको पैदल जाना पड़ेगा साथ ही कीचड़ और नालों से गुजरकर मठ तक पहुंचना होगा। जिला मुख्यालय से लगभग 80 किमी दूर रन्नौद में यह मठ है। जिले में पर्यटन को बढ़ावा देने की बड़ी-बड़ी बातें नेताओं व प्रशासनिक अफसरों द्वारा की जाती हैं लेकिन प्राचीन खोकई मठ को जाने वाला बदहाल रास्ता यह बताता है कि यहां पर बातें खूब हुईं लेकिन काम कुछ नहीं हुआ।
रन्नौद के प्राचीन खोकई मठ के निर्माण की खासियत है कि बड़े-बड़े पत्थरों को खंड़ों का उपयोग किया गया है जो कि बिना किसी गारे से जुड़े हुए हैं। मठ की छत बनाने के लिए पत्थर की बड़ी-बड़ी पटियों का इस्तेमाल किया गया है इसमें खुला आंगन है जिसके चारों ओर बरामदा है तथा इससे लगे हुए कमरे बने हैं। कदवाया, सुरवाया तथा तेरही के मठों की तरह इस मठ का निर्माण भी 9वी और 10 वीं शताब्दी के दौरान शैव मत अनुयायियों के निवास हेतु किया गया था।
प्राचीन खोकई मठ केंद्रीय संरक्षित इमारत है। इसके रखरखाव की जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की जाती है। इसके बाद भी यहां पर इस प्राचीन मठ को जाने वाले दो किमी के रास्ते की हालत खराब होने पर किसी भी जिम्मेदार अधिकारी ने कोई गौर नहीं किया। शिवपुरी के वरिष्ठ लेखक प्रमोद भार्गव ने बताया कि इस मठ का निर्माण 9वी और 10 वीं शताब्दी के दौरान शैव मत अनुयायियों ने किया। इस मठ का ऐतिहासिक महत्व है। इसके बाद भी यहां तक जाने वाले रास्ते की हालत खराब है। यह प्रशासनिक लापरवाही का नमूना है। लेखक डॉ अजय खेमरिया ने कहा कि हम मप्र में पर्यटन को बढ़ावा देने की बातें करते हैं लेकिन ऐतिहासिक और पर्यटन महत्व के स्थलों की ओर जाने वाले रास्तों पर भी प्रशासन का कोई ध्यान नहीं दे रहा। पर्यटक अतुल गौड़ और तीर्थराज भारद्वाज ने मांग की है कि यहां पर आवागमन के साधन बनाए जाएं साथ ही साइनेज बोर्ड लगाए जाए। जिससे बाहर से आने वाले पर्यटक इन स्थलों का भ्रमण कर सकें।