- trending-title
- ऋचा का कातिलाना अंदाज और पोज़ बहुत पसंद आया फैंस को
- Saturday, Nov 23, 2024
by NewsDesk - 03 Jun 24 | 135
नर्सिंग कॉलेज फर्जीवाड़े पर एक्शन के बाद अब सरकार ने मांगी मेडिकल कॉलेज डीन के पद पर हुई भर्ती की जानकारी...
- बगैर प्रशासनिक अनुभव के दे दी नियुक्ति
- भर्ती नियमों को बदल चहेतों को बना दिया डीन
- गाइड लाइन के उल्लंघन का आरोप...
- सरकार की जांच में खुलेगी फर्जीवाड़ा करने वालों की पोल
- इंटरव्यू में पांच अंक बढ़ाकर जूनियर को बनाया मेडिकल कॉलेज का डीन
भोपाल । मप्र के नर्सिंग कॉलेजों में हुए फर्जीवाड़े को लेकर जिस तरह मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सख्त कदम उठाया है, उससे उम्मीद जगी है कि मप्र के सरकारी मेडीकल कॉलेजों में डीन की सीधी भर्ती में हुए फर्जीवाड़े की परतें भी जल्द खुलेंगी। सूत्रों की मानें तो मामला सामने आने के बाद सरकार ने मेडिकल कॉलेज डीन के पद पर हुई भर्ती की जानकारी मांगी है। आरोप लगाया जा रहा है कि वरिष्ठ अधिकारियों ने भर्ती नियमों को बदल कर प्रशासनिक अनुभव न रखने वालों को भी डीन बना दिया है। सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 30 से 40 सालों से काम कर रहे डॉक्टर्स नियमों के उलट इस भर्ती प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं। दरअसल, इंटरव्यू के लिए 20 अंक निर्धारित थे लेकिन पिछले महीने 18 मेडिकल कॉलेजों में डीन के चयन के लिए इन्हें 25 कर दिया गया। मप्र मेडिकल टीचर्स एसो. का आरोप है कि यह बदलाव डीन के पदों के लिए आवेदन लेने के बाद किया गया है।
सूत्रों का कहना है कि सरकार द्वारा मेडिकल कॉलेज डीन के पद पर हुई भर्ती की जानकारी तलब किए जाने की खबर सामने आने ही हडक़ंप मच गया है। दरअसल, मप्र के सरकारी मेडीकल कॉलेजों में डीन की सीधी भर्ती पूरी तरह विवादों के घेरे में आ गई हैं। शासन स्तर के आलाधिकारियों ने अपने चहेते लोगों को डीन की कुर्सी पर बिठाने के लिए नियम तक बदल डाले। कुछ चिकित्सा शिक्षकों की पात्रता ही नहीं थी कि वे डीन जैसे पद के लिए आवेदन कर पाते लेकिन आला अफसरों ने ऐसे तीन डॉक्टरों को भी डीन बना दिया। नियमों को ताक पर रखकर मनमाने तरीके से डीन बनाए गए अभ्यर्थियों में प्रभावशाली लोगों से जुड़े नाम शामिल हैं।
- इकलौता राज्य जहां डीन की सीधी भर्ती
चिकित्सा शिक्षा से जुड़े लोगों का कहना है कि देशभर में मप्र इकलौता राज्य है जहां मेडिकल कॉलेज के डीन की सीधी भर्ती की गई है। इससे पहले यह पद पदोन्नति से भरा जाता रहा है। कॉलेजों में पदस्थ वरिष्ठ प्रोफेसर को इस पद पर सरकारी एवं स्वायत्त शासी कॉलेजों में डीन बनाया जाता था ताकि अनुभवी लोग कॉलेजों का संचालन कर सकें। मप्र के पूर्व सीएम शिवराज सिंह ने चिकित्सा शिक्षा और लोक स्वास्थ्य महकमे को एक करने की घोषणा की थी जिस पर अमल वर्तमान सरकार ने किया। इस एकीकृत व्यवस्था में पहला निर्णय सभी 18 मेडिकल कॉलेज के डीन की सीधी भर्ती का लिया गया।
- इनके लिए बढ़ाए अंक
सूत्रों का कहना है कि इंटरव्यू में जो पांच अंक बढाए गए हैं उसकी असली वजह डॉ. आरकेएस धाकड़ हैं।इनका अपना राजनीतिक रसूख है। आरोप तो यह भी लगाए जा रहे हैं की उनकी पदस्थापना के लिए ही ग्वालियर के डीन का पद खाली रखा गया था और वेटिंग लिस्ट में उन्हें नंबर वन रखा गया था। बाद में उन्हें वरिष्ठों को दरकिनार कर गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय ग्वालियर का डीन बनाया गया है। वहीं डॉ. अभय कुमार और डॉ. धर्मदास परमहंस वेटिंग लिस्ट में दूसरे और तीसरे नंबर पर रखे गए थे। उत्तर प्रदेश में पदस्थ होने के बावजूद डॉ. अभय कुमार को छिंदवाड़ा का डीन बनाया गया। जबकि पूर्व में सरकारी नौकरी छोडक़र भोपाल में एक निजी कॉलेज में काम करने वाले डॉ. धर्मदास परमहंस को शिवपुरी का डीन बनाया गया है।
- अचानक बदल दिए गए नियम
19 मार्च में शासन ने सरकारी मेडिकल कॉलेजों के लिए डीन, प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, असिटेंट प्रोफेसर की सीधी भर्ती के अलावा स्वशासी कॉलेजों के आदर्श भर्ती नियम 2018 में संशोधन आदेश जारी किए। इस आदेश के अनुसार शैक्षणिक एवं डीन पदों के लिए नेशनल मेडिकल कमीशन की पात्रता के साथ-साथ इंटरव्यू के 20 अंक निर्धारित किए गए। सरकार ने सभी कॉलेजों के डीन पद सरकारी घोषित कर दिए और भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी। इस बीच 27 फरवरी को एक संशोधन आदेश जारी किया गया जिसमें इंटरव्यू के अंक 20 से बढाकर 25 कर दिए गए।
- इसलिए किया गया संशोधन
आरोप लगाए जा रहे हैं कि भर्ती के दौरान यह संशोधन आदेश इसलिए जारी किया गया क्योंकि कुछ अभ्यर्थियों के अंक उनके अनुभव, डिग्री के हिसाब से कम हो रहे थे जिसके चलते चिन्हित आवेदकों का चयन प्रक्रिया से बाहर होना पक्का हो गया था। प्रो राटा यानी आनुपातिक मैरिट अंक से होता है। इसी के आधार पर इंटरव्यू के अंक जोडक़र चयन सूची बनाई जाती है। भर्ती नियमों के अनुसार डीन हेतु किसी प्रशासनिक पद का अनुभव जरूरी था इसके लिए अधिकतम 10 अंक निर्धारित थे लेकिन 18 लोगों की चयन सूची में डॉ. मनीष निगम, डॉ. सुनील अग्रवाल एवं डॉ. दीपक मरावी को किसी प्रकार का कोई प्रशासनिक अनुभव नही था। इसके बाबजूद उन्हें इंटरव्यू के जरिए डीन के पद पर चयनित कर लिया गया है। खासबात यह भी है कि इन तीनों का सेवाकाल भी 15 साल से कम का है। डॉ. राजधर दत्त के साथ मनीष निगम एवं सुनील अग्रवाल पूर्ण कालिक प्रोफेसर भी नहीं रहे इसके बाबजूद तीनों को डीन की कुर्सी मिल गई। इस सबके बीच जानकारी में यही आया है कि डॉ. कविता एन सिंह, डॉ. संजय दीक्षित एवं डॉ. नवनीत सक्सेना के संबंध प्रभावशाली लोगों से है, जिसका फायदा उन्हें इस चयन प्रक्रिया में मिला है।
कलेक्टर से ज्यादा वेतनमान है डीन का
डीन का पद राजपत्रित श्रेणी का है और इसका वेतनमान 144200-218200 का है। इतने उच्च वेतनमान के पद कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर के भी नही हैं। यूपीएससी और एमपीपीएससी में चयन के लिए इंटरव्यू में 20 फीसदी से भी कम अंक निर्धारित हैं। आदर्श भर्ती नियम भी यही कहते है कि अनुभव, शोध और ट्रेक रिकार्ड के साथ 20 फीसदी से अधिक अंक इंटरव्यू में नहीं रखे जा सकते हैं। लेकिन अपने खास लोगों को डीन बनाने के लिए अधिकारियों ने नियमों को ही बदल डाला।
- मेडिकल कॉलेजों में भर्तियां हमेशा विवादों में
मप्र में मेडिकल कॉलेजों में होने वाली अधिकतर भर्तियां विवादों में रही है। स्वशासी व्यवस्था में जमकर मनमानी होती रही है। खासकर नए मेडिकल कॉलेजों में तो करोड़ों के लेनदेन के आरोप और जांच तक चल रही हैं। शिवपुरी मेडिकल कॉलेज में हुई सभी भर्तियों की जांच विधानसभा कमेटी तक कर चुकी है लेकिन भाजपा और कांग्रेस सरकार में किसी स्तर पर कोई कारवाई नहीं हुई। विदिशा, दतिया, ग्वालियर, शहडोल में भी यही हालात है। एक नए मेडिकल कॉलेज में शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक संवर्ग के मिलाकर करीब 1500 पदों पर भर्ती होती है। इन भर्तियों के लिए कोई एकरूप प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती है। सूची में अनारक्षित वर्ग में पहले नंबर पर शासन द्वारा नियुक्त डॉ. संजय दीक्षित का नाम है, जो एमजीएम मेडिकल कॉलेज में डीन थे। राज्य में वरीयता के में चौथे नंबर डॉ. वीपी पांडे ने इस प्रक्रिया पर ही सवाल उठाते हुए याचिका लगाई थी और इसे गलत बताया था। इस व्यवस्था के विरोध में वे इस प्रक्रिया में शामिल ही नहीं हुए। जबलपुर मेडिकल कॉलेज में पदस्थ डॉ. संजय तोताड़े वरिष्ठता सूची में कहीं आगे हैं। उनकी नियुक्ति शासकीय सेवा के तहत हुई थी। पिछले साल सरकार ने उनसे जूनियर को डीन बना दिया, जिसके खिलाफ उन्होंने जबलपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। उनके नाम को विभाग ने दोनों ही सूची में वेटिंग लिस्ट में डाल दिया।
- 6 डॉक्टर्स स्वशासी कॉलेजों के नियुक्त किए गए
अनारक्षित वर्ग के 12 पदों में से 6 पर ही शासकीय डॉक्टरों का चयन किया गया। बाकी अन्य छह पदों पर स्वशासी संस्था के तहत नियुक्त जूनियर डॉक्टरों का चयन किया गया। इस सूची में डॉ. संजय दीक्षित, डॉ. नवनीत सक्सेना, डॉ. अनिता मूथा, डॉ. शशि गांधी, डॉ. परवेज सिद्दकी और डॉ. देवेंद्र शाक्य ही शासकीय सेवा के तहत नियुक्त डॉक्टर्स हैं। अन्य छह चयनित डॉक्टर्स स्वशासी संस्था के तहत नियुक्त हुए हैं।
by NewsDesk | 28 Sep 24
by NewsDesk | 28 Sep 24
by NewsDesk | 28 Sep 24
by NewsDesk | 28 Sep 24
by NewsDesk | 28 Sep 24
by NewsDesk | 28 Sep 24
by NewsDesk | 28 Sep 24
by NewsDesk | 28 Sep 24
by NewsDesk | 28 Sep 24
by NewsDesk | 28 Sep 24