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- Thursday, Nov 21, 2024
by NewsDesk - 29 Jul 24 | 126
नई दिल्ली। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने हाल ही में एक बार फिर गाजा में इजराइल के घातक और विनाशकारी हमले के खिलाफ जोरदार ढंग से बात करते हुए नजर आई थीं. उन्होंने अब तक हजारों लोगों की जान लेने वाले युद्ध को बर्बर कहा है और देश से इजराइल सरकार की नरसंहारकारी कार्रवाईयों की निंदा करने और उन्हें रोकने के लिए मजबूर करने के लिए कहा है. हालांकि, इजराइल को लेकर प्रियंका गांधी का रुख कांग्रेस पार्टी से बिल्कुल अलग है. दरअसल, वायनाड में जल्द ही बाय इलेक्शन होने वाले हैं और यहां से प्रियंका गांधी चुनाव लड़ रही हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा मुस्लिम वोटरों को लुभाने में लगी हुई है।
बता दें कि, शुक्रवार को प्रियंका गांधी वाड्रा का इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू द्वारा पिछले अक्टूबर में इजराइल-हमास युद्ध की शुरुआत के बाद अमेरिकी कांग्रेस को दिए गए अपने पहले संबोधन के बाद एक बयान सामने आया था. उन्होंने युद्ध को "बर्बरता और सभ्यता के बीच टकराव" के रूप में भी परिभाषित किया था. नेतन्याहू की अमेरिका यात्रा और कांग्रेस की संयुक्त बैठक में उनका भाषण ऐसे वक्त में आया है जब गाजा में इजराइल लगातार हमले कर रहा है. भारत में भी इजराइल-हमास युद्ध ने बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार और कांग्रेस को विभाजित कर दिया है।
प्रियंका गांधी ने एक्स पर एक पोस्ट करते हुए लिखा, "यह हर सही सोच वाले व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारी है, जिसमें वो इज़राइली नागरिक शामिल हैं जो हिंसा में विश्वास नहीं करते हैं, और दुनिया की हर सरकार इज़राइली सरकार के नरसंहार की निंदा करे और उन्हें रुकने के लिए मजबूर करे. उनकी हरकतें एक ऐसी दुनिया में स्वीकार नहीं की जा सकती हैं जो सभ्यता और नैतिकता का दावा करती है. वह इसे बर्बरता और सभ्यता का युद्ध कहते हैं." वह बिल्कुल सही कह रहे हैं, सिवाय इसके कि वह और उनकी सरकार बर्बर है और उनकी बर्बरता को पश्चिमी दुनिया के ज़्यादातर देशों का भरपूर समर्थन मिल रहा है. यह वाकई शर्मनाक है।
7 अक्टूबर को इजराइल में हमास के हमलों से शुरू हुए युद्ध ने शुरू में कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया, जो ऐतिहासिक रूप से फिलिस्तीनी मुद्दों के प्रति सहानुभूति रखती रही है. कांग्रेस ने शुरू में हमास का नाम नहीं लिया और इजराइल पर उसके हमले को लेकर आतंक शब्द का इस्तेमाल करने से परहेज किया, जिसके कारण लोकसभा सांसद शशि थरूर जैसे कुछ नेताओं ने 9 अक्टूबर को कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में कहा था कि सीडब्ल्यूसी के प्रस्ताव में इजराइल पर हमास के हमले की निंदा की जानी चाहिए, संगठन का नाम लिया जाना चाहिए और "आतंक" शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. हालांकि, इसके बाद भी उसमें हमास हमले का जिक्र नहीं किया गया।
कांग्रेस हमेशा से ही फिलिस्तीनी मुद्दों के प्रति सहानुभूति रखती रही है, लेकिन नेहरू-गांधी परिवार के फिलिस्तीनी नेता यासर अराफात के साथ गहरे संबंध थे. कहा जाता है कि अराफात, इंदिरा गांधी को अपनी बहन मानते थे और उनके अंतिम संस्कार में वह रोते हुए भी नजर आए थे. वह राजीव गांधी के अंतिम संस्कार में भी शामिल हुए थे, जबकि सोनिया गांधी राजनीति में आने के बाद कई बार अराफात से मिली थीं।
सोनिया ने इजराइल हमास युद्ध को लेकर लिखा था, "इज़राइल की असंगत और समान रूप से क्रूर प्रतिक्रिया से दुनिया फिर से कमज़ोर हो गई है". हालांकि, इसका एक ऐतिहासिक संदर्भ भी है. 1948 में, भारत एकमात्र गैर-अरब देश था जिसने महासभा में फिलिस्तीन के संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्तावित विभाजन योजना के खिलाफ मतदान किया था जिसकी वजह से इज़राइल का निर्माण हुआ था. लेकिन 1992 में चीजें उस वक्त बदल गई थीं, जब पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने तेल अवीव में एक भारतीय दूतावास खोला, जिसका उद्देश्य इज़राइल के साथ भारत के संबंधों को सामान्य बनाना था. इससे भारत-इज़राइल संबंध बढ़े भी थे।
इसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि भारत फिलिस्तीनी प्राधिकरण का मित्र बना रहे और इस वजह से 2011 में यूनेस्को के पूर्ण सदस्य के रूप में इसे शामिल करने का समर्थन किया और मतदान के अधिकार के बिना संयुक्त राष्ट्र में इसे गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य के रूप में शामिल करने के लिए UNGA में एक प्रस्ताव का सह-प्रायोजक भी बना.
by NewsDesk | 28 Sep 24
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