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- Tuesday, Dec 24, 2024
by NewsDesk - 26 Jun 24 | 156
नई दिल्ली। भारत में पानी की बढ़ती कमी कृषि तथा उद्योग क्षेत्र को प्रभावित कर सकती है जो देश के लिए हानिकारक है, क्योंकि खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि और आय में गिरावट से सामाजिक अशांति पैदा हो सकती है। रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा कि जल आपूर्ति में कमी से कृषि उत्पादन तथा औद्योगिक कार्य प्रभावित हो सकते हैं, इसके परिणामस्वरूप खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ सकती हैं…. यह उन क्षेत्रों की ऋण क्षमता के लिए हानिकारक हो सकता है, जो भारी मात्रा में जल का उपभोग करते हैं, जैसे कोयला बिजली उत्पादक और इस्पात निर्माता आदि।
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत की तेज आर्थिक वृद्धि, साथ ही तीव्र औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के कारण दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश में पानी की उपलब्धता कम होगी। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव तेजी से बढ़ने के कारण जल संकट और भी बदतर हो रहा है, जिसके चलते सूखा, लू तथा बाढ़ जैसी जलवायु संबंधी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। मूडीज ने रिपोर्ट में कहा कि भारत में पानी की कमी बढ़ती जा रही है, क्योंकि तेज आर्थिक वृद्धि तथा जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के कारण लगातार बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के बीच पानी की खपत बढ़ रही है।
यह रिपोर्ट उस समय आई है जब दिल्ली के कुछ हिस्सों में जल संकट एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। जल संसाधन मंत्रालय के आंकड़ों का हवाला देकर मूडीज ने कहा कि भारत की प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल उपलब्धता 2031 तक घटकर 1,367 क्यूबिक मीटर रह जाने की संभावना है। यह 2021 में पहले से ही कम 1,486 क्यूबिक मीटर है। मंत्रालय के अनुसार, 1,700 क्यूबिक मीटर से कम का स्तर जल संकट को दर्शाता है। पिछले एक दशक में बहुपक्षीय ऋणदाता ने ग्रामीण समुदायों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के भारत सरकार के प्रयासों का समर्थन किया है। 1.2 अरब अमरीकी डॉलर के कुल वित्तपोषण वाली कई परियोजनाओं से दो करोड़ से अधिक लोगों को लाभ हुआ है।
by NewsDesk | 28 Sep 24
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