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- Wednesday, Dec 25, 2024
by NewsDesk - 09 Jul 24 | 138
भोपाल : गरीब एवं मध्यमवर्गीय परिवारों की महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए पहले भी केंद्र और राज्य सरकार है तमाम योजनाएं चलाती रही हैं, ताकि महिलाओं को कुछ इन योजनाओं से आर्थिक मदद मिल सके और उनके जीवन स्तर में कुछ सुधार हो। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा महिलाओं बच्चियों के उत्थान के लिए तमाम स्कीम में चलाई जा रही थी। इन स्कीमों के के संचालन में होने वाले पैसे के खर्चों को लेकर उन्होंने कभी भी इन योजनाओं को प्रदेश पर बढ़ते हुए कर्ज के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया और ना ही उन्होंने कभी इस प्रकार की योजनाओं को बंद करने का विचार बनाया। वर्तमान समय में यदि प्रदेश की सत्ता शिवराज सिंह चौहान के हाथ में होती तो शायद,किए गए वादे के अनुसार अभी तक लाडली बहना को इस योजना के माध्यम से₹3000 मासिक मिलना आरंभ हो गया होता ! प्रदेश में योजनाओं का संचालन कैसे किया जाना है इसके लिए पैसा कहां से जुटना है यह शिवराज सिंह चौहान को भलीभांति आता है।
लेकिन जबसे डॉक्टर मोहन यादव के हाथ में प्रदेश की सत्ता आई है तब से प्रदेश की योजनाओं को सुचारू रूप से संचालन को लेकर संशय बना हुआ है। बार-बार प्रदेश पर बढ़ते हुए कर्ज को लेकर इन योजनाओं को प्रदेश जिम्मेदार ठहराया जाता है। जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। क्योंकि टैक्स के रूप में आमजन से सरकार जो पैसा वसूलती हैं वही पैसा प्रदेश द्वारा चलाई जाने वाली तमाम विकास की योजनाओं संचालन का संचालन होता है। सरकार यदि टैक्स में₹1 की भी बढ़ोतरी करती है तो सरकारी खजाने में अरबो रूपया इकट्ठा हो जाता है तो फिर भला कोई योजना प्रदेश पर बढ़ते हुए कर्ज के लिए कैसे जिम्मेदार हो सकती है ?
प्रदेश पर बढ़ते हुए कर्ज के लिए जिम्मेदार है सरकार के विधायक और मंत्री हैं जिन्हें सारी सुख सुविधाओं के साथ-साथ लाखों रुपए सैलरी, वाहन-पेट्रोल भत्ता,फ्री हवाई- रेल यात्रा, खुद के गृह नगर और राजधानी में बंगला और इन बंगलो पर फ्री बिजली-पानी, बंगलो पर तैनात सैकड़ो कर्मचारी और उनकी सैलरी आदि सहित तमाम में से खर्चे हैं जिनकी भरपाई सरकारी खजाने से ही होती है। ये खर्चे कोई मामूली खर्चे नहीं है बल्कि इन पर खर्च होने वाला यह पैसा अरबो रुपए होता है। देश-प्रदेश पर बढ़ते कर्ज का असली कारण यही है। ये छोटी-मोटी योजनाएं नहीं।
यूं तो सभी नेता अपने आप को जनसेवक कहते हैं वोट मांगते समय हाथ जोड़कर जनता की सेवा करने की सौगंध भी कहते हैं, लेकिन जब यह चुनाव जीत जाते हैं मंत्री या और विधायक बन जाते हैं तो फिर यह जनता से अपनी सेवा करवाते हैं उसके द्वारा दिए गए टैक्स से मिले पैसे पर ऐस करते हैं। अभी यहां प्रश्न वही उठता है कि यदि यह जन सेवक हैं तो सेवा के बदले सैलरी कैसी ? सेवा के बदले घर चलाने के लिए कुछ सुविधाऐ या मेहनताना तो ले सकते हैं लेकिन इतनी भारी-भरकम सुविधाएं, समझ से परे हैं। और यदि प्रदेश की सत्ता चलाने के लिए ये मंत्री विधायक अपनी सेवाओं को नौकरी के रूप में देखते हैं तो, इन्हें सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों के समान सिर्फ सैलरी ही मिलना चाहिए अन्य सुख सुविधा नहीं।
अन्य सुविधाओं का यदि उन्हें लाभ लेना है तो उसकी भरपाई सरकारी कर्मचारियों की तरह अपनी सैलरी में से करना सुनिश्चित होना चाहिए। इन्हे एक पेंशन ही मिले,अपना इनकम टैक्स ये स्वयं भरें,इतना ही नहीं चुनावों के दौरान जो पार्टी प्रत्याशी को चुनाव लड़ाने के लिए, जो बंदोबस्त और चुनावी सभाएं आदि सत्ताधारी पार्टी द्वारा सरकारी खजाने से किए जाते हैं। उन पर होने वाले खर्च की वसूली भी पार्टी फंड या पार्टी उम्मीदवार से की जानी चाहिए। सरकारी खजाने से नहीं।
यदि इस सब पर अमल किया जाएगा तो प्रदेश कर्ज से तो बाहर आएगा ही आएगा बल्कि विकास की नई इबादत भी लिखेगा। देश और प्रदेश को यदि वास्तविक रूप से कर्ज से बाहर निकलना है तो जिम्मेदार मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को इस प्रकार के निर्णय लेना होंगे।
by NewsDesk | 28 Sep 24
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