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- Sunday, Dec 22, 2024
by NewsDesk - 10 Jul 24 | 121
पेरिस । सात समंदर पार फ्रांस के संसदीय चुनाव की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है। दरअसल फ्रांस में जीत की दहलीज पर खड़ी एक एंटी मुस्लिम पार्टी को रोकने के लिए विरोधी दलों ने गठबंधन कर एक झटके में पूरा खेल बिगड़ गया। ठीक कुछ ऐसा जैसा लोकसभा चुनाव में यूपी में देखा था। यहां बड़ी जीत हासिल करने की दहलीज पर खड़ी दक्षिणपंथी पार्टी भाजपा को रोकने के लिए चुनाव से ऐन पहले अखिलेश यादव और राहुल गांधी की पार्टियों के बीच गठबंधन हुआ था। फिर नतीजे चौंकाने वाले आए। फ्रांस के संसदीय चुनाव के नतीजे काफी हद तक यूपी जैसे रहे। दरअसल, एक दिन पहले फ्रांस के चुनावी नतीजे आए थे। इसमें जीत की प्रबल दावेदार धुर दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली 143 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर आ गई। जबकि केवल एक सप्ताह पहले उस पार्टी के 300 से अधिक सीटें जीतने का अनुमान जताया जा रहा था। दरअलस, 30 जून (रविवार) को पहले चरण का चुनाव हुआ था। उस चुनाव में नेशनल रैली बड़ी जीत हासिल करने की ओर बढ़ रही थी। यह बढ़त देख उसके सभी विरोधी दल भयभीत हो गए। इसमें राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों की पार्टी और वामपंथी दल थे। इसके बाद वामपंथी दल अपने सारे मतभेद भूलकर एक नया एंटी-नेशनल रैली गठबंधन बना लिया। फिर मैक्रों के समर्थक और वामपंथी भी अपने मतभेद भूला दिए। वे एकजुट होकर मैदान में उतरे। दूसरी ओर दक्षिणपंथी दल के उभार को रोकने के लिए बड़ी संख्या में लिबरल मतदाता वोट देने पहुंचे। फिर क्या था एक सप्ताह के भीतर पूरा खेल बिगड़ गया। नेशनल रैली के खिलाफ वोटर्स एकजुट हो गए। एंटी मुस्लिम पार्टी नेशनल रैली को रोकने के लिए वामपंथी और मध्यमार्गी पार्टियों ने न्यू पॉपुलर फ्रंट (एनएफपी) बनाया था। इस एनएफपी को सबसे ज्यादा 182 सीटों मिली है। दूसरे नंबर पर मैक्रों का गठबंधन एनसेंबल अलायंस है जिसे 168 सीटें मिली हैं। तीसरे नंबर पर नेशनल रैली आ गई और केवल 143 सीटें मिली हैं। फ्रांस की नेशनल एसेंबली में 577 सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए किसी गठबंधन या पार्टी के पास कम से कम 289 सीटें चाहिए। उम्मीद की जा रही है कि एनएफपी और एनसेंबल अलांयस मिलकर सरकार बना लेंगी। लेकिन, इनके बीच भी कई मुद्दों पर मतभेद है। इसके बाद राष्ट्रपति मैक्रों के लिए अगले प्रधानमंत्री की नियुक्ति में समय लग सकता है। बताया जा रहा हैं ये दल नेशनल रैली के खिलाफ एकजुट हुए हैं, लेकिन उनके आपसी मतभेद भी इतने हैं कि देश में स्थायी सरकार की संभावना कमजोर होती दिख रही है।
by NewsDesk | 28 Sep 24
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